हिन्दी के अधूरे राजभाषा स्वरूप में मनता हिन्दी दिवस

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विवेक रंजन श्रीवास्तव-विनायक फीचर्स

1947 में जब भारत को आजादी मिली तो देश के सामने राजभाषा के चुनाव को लेकर गहन चर्चा हुई,इस चर्चा के कई दौर चले।भारत में अनेक भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, ऐसे में राष्ट्रभाषा के रूप में किसे चुना जाए ये संवेदनशील सवाल था। व्यापक मंथन के बाद संविधान सभा ने देवनागरी लिपि में लिखी हिन्दी को राष्ट्र की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार किया ।भारत के संविधान में भाग 17 के अनुच्छेद 343 (1) में कहा गया है कि राष्ट्र की राज भाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी । 14 सितम्बर, 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था इसीलिये राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की अनुशंसा के बाद 1953 से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाने लगा।प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस दिन के महत्व देखते हुए प्रति वर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा की थी।

*विश्व हिन्दी दिवस 10जनवरी को क्यों ?*

हिन्दी आज विश्व में तीसरे नम्बर पर बोले जाने वाली भाषा बन चुकी है ।भारतीय विश्व के कोने कोने में बिखरे हुये हैं । वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये विश्व हिन्दी सम्मेलनों की शुरुआत की गई और प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था इसीलिए इस दिन को विश्व हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।

*हिन्दी की वैधानिक स्थितियां*

चूंकि जब अंग्रेज भारत से गये तब सरकारी कामकाज प्रायः अंग्रेजी में ही होते थे , रातों रात सारा हिन्दीकरण संभव नहीं था अतः अंग्रेजी में कामकाज यथावत जारी रहा।इसके चलते हिन्दी और अंग्रेजी के बारे में यह भ्रम व्याप्त है कि ये दोनों भारत संघ की सह-राजभाषाएँ हैं ।वास्तविक सांविधानिक स्थिति बिल्कुल भिन्न है ।संविधान में कहीं भी अंग्रेजी को राजभाषा नहीं कहा गया है।संविधान में अंग्रेजी के लिए प्रयुक्त शब्द हैं ” the language for the time being authorised for use in the Union for official purposes. ” संविधान ने कहा कि अंग्रेजी अगले पन्द्रह वर्ष तक राजकीय प्रयोजन के लिए साथ साथ प्रयुक्त होगी , तब तक संपूर्ण रूप से हिन्दी अपना ली जायेगी किन्तु दलगत तथा क्षेत्रीय राजनीति के चलते ये पंद्रह बरस अब तक खिंचते ही जा रहे हैं।
अनुच्छेद 344 में मुख्यत: छ: संदर्भों को रेखांकित किया गया है-
राष्ट्रपति द्वारा पाँच वर्ष की समाप्ति पर भारत की विभिन्न भाषाओं के सदस्यों के आधार पर एक आयोग गठित किया जाएगा और आयोग राजभाषा के संबंध में कार्य-दिशा निर्धारित करेगा।
हिंदी के उत्तरोत्तर प्रयोग पर बल दिया जाएगा।देवनागरी के अंकों के प्रयोग होंगे। संघ से राज्यों के बीच पत्राचार की भाषा और एक राज्य से दूसरे राज्य से पत्राचार की भाषा पर सिफारिश होगी।आयोग के द्वारा औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति के साथ लोक-सेवाओं में हिंदीतर भाषी क्षेत्रों के न्यायपूर्ण औचित्य पर ध्यान रखा जायेगा।
राजभाषा पर विचारार्थ तीस सदस्यों की एक समिति का गठन किया जाएगा जिसमें 20 लोकसभा और 10 राज्य सभा के आनुपातिक सदस्य एकल मत द्वारा निर्वाचित होंगे।
समिति राजभाषा हिंदी और नागरी अंक के प्रयोग का परीक्षण कर राष्ट्रपति को प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगी।राष्ट्रपति के द्वारा आयोग के प्रतिवेदन पर विचार कर निर्देश जारी किया जाएगा।
अनुच्छेद 345, 346 और 347 में विभिन्न राज्यों की प्रादेशिक भाषाओं के विषय में भी साथ-साथ विचार किया गया है।
अनुच्छेद 345 में प्रावधान है कि राज्य के विधान मण्डल द्वारा विधि के अनुसार राजकीय प्रयोजन के लिए उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषा या हिंदी भाषा के प्रयोग पर विचार किया जा सकता है।इस संदर्भ में यह भी स्पष्ट किया गया है कि जब तक किसी राज्य का विधान मंडल ऐसा प्रावधान नहीं करेगा, तब तक कार्य पूर्ववत अंग्रेजी में चलता रहेगा।
अनुच्छेद 346 के अनुसार संघ में राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त भाषा यदि दो राज्यों की सहमति पर आपस में पत्राचार के लिए उपयोगी समझते हैं, तो उचित होगा।यदि दो या दो से अधिक राज्य आपस में निर्णय लेकर राजभाषा हिंदी को संचार भाषा के रूप में अपनाते हैं, तो उचित होगा।
अनुच्छेद 347 कहता है कि यदि किसी राज्य में जनसमुदाय द्वारा किसी भाषा को विस्तृत स्वीकृति प्राप्त हो और राज्य उसे राजकीय कार्यों में प्रयोग के लिए मान्यता दे, और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिल जाए, तो उक्त भाषा का प्रयोग मान्य होगा।
अनुच्छेद 348 में उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों की भाषा पर विचार किया गया है। यहां यह प्रावधान है कि जब तक संसद विधि द्वारा उपबंध न करे, तब तक कार्य अंग्रेजी में ही होता रहेगा।इसके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय, प्रत्येक उच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र रखे गए।
हिन्दी प्रयोग के लिए संसद के दोनों सदनों से प्रस्ताव पारित होना चाहिए।अधिनियम संसद या राज्य विधान मंडल से पारित किए जाएं और राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा स्वीकृति मिले।यह प्रस्ताव विधि के अधीन और अंग्रेजी में होंगे। नियमानुसार स्वीकृति के बाद हिंदी का प्रयोग संभव होगा, किंतु उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णय या आदेश पर लागू नहीं होगा।
अनुच्छेद 349 में प्रावधान है कि संविधान के प्रारंभिक 15 वर्षों की कालावधि तक संसद के किसी सदन से पारित राजभाषा संबंधित विधेयक या संशोधन बिना राष्ट्रपति की मंजूरी के स्वीकृत नहीं होगा।ऐसे विधेयक पर राजभाषा संबंधित तीस सदस्यीय आयोग की स्वीकृति के पश्चात् , राष्ट्रपति विचार कर स्वीकृति प्रदान करेंगे।
अनुच्छेद 350 के प्रावधानों के अनुसार विशेष निर्देशों को व्यवस्थित किया गया है।इसके अनुसार कोई भी व्यक्ति अपनी समस्या को संघ और राज्य के पदाधिकारियों को संबंधित मान्य भाषा में आवेदन कर सकेगा।इस तरह प्रत्येक व्यक्ति को अधिकृत भाषा में संघ या राज्य के अधिकारियों से पत्र-व्यवहार का अवसर दिया गया है।
अनुच्छेद 351 में भारतीय संविधान की अष्टम सूची में स्थान प्राप्त भाषाओं को महत्व दिया गया है।हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार से भारत की सामाजिक संस्कृति को अभिव्यक्ति मिलने का संकेत है। हिंदी भाषा को मुख्यत: संस्कृत शब्दावली के साथ अन्य भाषाओं के शब्दों से समृद्ध करने का संकेत भी इस अनुच्छेद में किया गया है।
*हिन्दी के साथ साथ उपयोग हेतु राष्ट्रपति के आदेश*
भारत संघ में राजभाषा हिंदी के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रपति के द्वारा समय-समय पर आदेश जारी किए गए हैं।1952 का आदेश उल्लेखनीय है जिसमें राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 343(2) के अधीन 27 मई, 1952 को एक आदेश जारी किया जिसमें संकेत था कि राज्य के राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति पत्रों में अंग्रेजी के साथ साथ हिंदी और अंक नागरी लिपि में हों।
राजभाषा आयोग की स्थापना सन् 1955 में हुई।आयोग के तीस सदस्यों द्वारा राजभाषा संदर्भ में निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए गए-
त्वरित गति से हिन्दी के पारिभाषिक शब्द-निर्माण हों ।
14 वर्ष की आयु तक प्रत्येक विद्यार्थी को हिंदी भाषा की शिक्षा दी जाए।
माध्यमिक स्तर तक भारतीय विद्यार्थियों को हिंदी शिक्षण अनिवार्य हो।
इसमें से प्रथम सिफारिश मान ली गई।अखिल भारतीय और उच्चस्तरीय सेवाओं में अंग्रेजी जारी रखी गई।सन् 1965 तक अंग्रेजी को प्रमुख और हिंदी को गौण रूप में स्वीकृति मिली। 45 वर्ष से अधिक उम्र के कर्मचारियों को हिंदी- प्रशिक्षण की छूट दी गई ।
1955 के राष्ट्रपति के आदेश के अनुसार संघ के सरकारी कार्यों में अंग्रेजी के साथ हिंदी प्रयोग करने का निर्देश किया गया।जनता से पत्र-व्यवहार, सरकारी रिपोर्ट का पत्रिकाओं और संसद में प्रस्तुत, जिन राज्यों ने हिंदी को अपनाया है, उनसे पत्र-व्यवहार, संधि और करार, अन्य देशों उनके दूतों अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से पत्र-व्यवहार, राजनयिक अधिकारियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में भारत के प्रतिनिधियों द्वारा जारी औपचारिक विवरण सभी कार्य अंग्रेजी और हिन्दी दोनो भाषाओ में किये जाने के निर्देश दिये गये।
1960 में राष्ट्रपति द्वारा राजभाषा आयोग के प्रतिवेदन पर विचार कर निम्न निर्देश जारी किए गए थे-
वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली के निर्माणार्थ शिक्षा मंत्रालय के अधीन एक आयोग स्थापित किया जाए।शिक्षा मंत्रालय, सांविधिक नियमों आदि के मैनुअलों की एकरूपता निर्धरित कर अनुवाद कराया जाए।मानक विधि शब्दकोश, हिंदी में विधि के अधिनियम और विधि-शब्दावली निर्माण, हेतु कानून विशेषज्ञों का एक आयोग बनाएं।तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों को छोड़, 45 वर्ष तक की उम्र वाले कर्मचारियों को हिंदी प्रशिक्षण अनिवार्य किया जावे ।गृह मंत्रालय हिंदी आशुलिपिक, हिंदी टंकण प्रशिक्षण योजना बनाए।
*1963 का राजभाषा अधिनियम*
26 जनवरी, 1965 को पुन: आगामी 15 वर्षों तक अंग्रेजी को पूर्ववत् रखने का प्रावधान कर दिया गया। हिंदी-अनुवाद की व्यवस्था पर जोर दिया गया।उच्च न्यायालयों के निर्णयों आदि में अंग्रेजी के साथ हिंदी या अन्य राजभाषा के वैकल्पिक प्रयोग की छूट दी गई ।इससे अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहा।देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली हिंदी को वह स्थान नहीं मिल सका जो राजभाषा से अपेक्षा थी।
वर्ष 1968 में संविधान के राजभाषा अधिनियम को ध्यान में रखकर संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष संकल्प पारित किया।
इसमें विचार रखे गए-
हिंदी प्रचार-प्रसार का प्रयत्न किया जाएगा और प्रतिवर्ष लेखा-जोखा संसद के पटल पर रखा जाएगा।
आठवीं सूची की भाषाओं के सामूहिक विकास पर राज्य सरकारों से परामर्श और योजना-निर्धारण ।
त्रिभाषा-सूत्र पालन करना ।
संघ लोक-सेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी के साथ हिंदी और आठवीं सूची की भाषाओं को अपनाना।
कार्यालयों से जारी होने वाले सभी दस्तावेज हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हों।संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत किए जाने वाले सरकारी पत्र आदि अनिवार्य रूप से हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में हों।
राजभाषा हिंदी कार्यान्वयन के लिए देश को भाषिक धरातल पर तीन भागों में बाँटा गया-
‘क’ क्षेत्र- बिहार, हरियाणा, हिमाचल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली ।
‘ख’ क्षेत्र- गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, अंडमान निकोबार द्वीप-समूह और केंद्रशासित क्षेत्र ।
‘ग’ क्षेत्र- भारत के अन्य क्षेत्र-बंगाल, उड़ीसा, आसाम, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल आदि ।
इस अधिनियम के अनुसार केद्र सरकार द्वारा ‘क’ क्षेत्र अर्थात हिन्दी बैल्ट से पत्र-व्यवहार हिंदी से ही होगा। यदि अंग्रेजी में पत्र भेजा गया, तो उसके साथ हिंदी अनुवाद अवश्य होगा। ‘ख’ क्षेत्र से पत्र-व्यवहार हिंदी के साथ अंग्रेजी में भी होगा। ‘ग’ क्षेत्र से पत्र-व्यवहार अंग्रेजी में हो सकता है।
इन स्थितियों में आजादी के अमृत महोत्सव के बाद भी हम हिन्दी के अधूरे राजभाषा स्वरूप में हिन्दी दिवस मना रहे हैं। प्रधानमंत्री ने दासता के सारे चिन्हों से मुक्त होने का आव्हान किया है , राजपथ का नामकरण कर्तव्य पथ हो चुका है,अब हम भारत वासियों और हिन्दी प्रेमियों का कर्तव्य है कि अंग्रेजी की दासता से मुक्त होकर हिन्दी को उसकी संपूर्णता में कब तक और कैसे अपनाते हैं।
*भोपाल से हिंदी को लेकर प्रयास*
दसवां विश्व हिंदी सम्मेलन भोपाल में आयोजित हुआ था।
हिंदी साहित्य के अनेकानेक पुरस्कार और सम्मान भोपाल से हिंदी भवन , राष्ट्रभाषा प्रचार समिति,म.प्र. साहित्य अकादमी,लेखक संघ, दुष्यंत संग्रहालय , माधव राव सप्रे संग्रहालय सहित कई निजी संस्थाएं भी प्रति वर्ष दे रही हैं। रवींद्रनाथ टैगोर विश्व विद्यालय भोपाल वैश्विक स्तर पर विश्व रंग का आयोजन कर रहा है। श्री संतोष चौबे ने अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार स्थापित करने तथा जिस तरह अंग्रेजी की जी आर ई, टाफेल परीक्षा होती है,उसी तरह हिंदी की योग्यता परीक्षा की योजना बनाई है।हिंदी को लेकर सतत काम हो रहे हैं । हिंदी को राष्ट्रव्यापी रूप से जनता और सरकारी समर्थन की दरकार है।(विनायक फीचर्स)

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