नाभिकीय विकिरण एक ऐसी अदृश्य शक्ति है जिसने मानव इतिहास में विनाश के सबसे गहरे दंश छोड़े हैं। आयनीकृत विकिरण (Ionizing radiation) में इतनी ऊर्जा होती है कि वह जीवित कोशिकाओं के परमाणुओं से इलेक्ट्रॉनों को बाहर निकाल सकती है। इससे आनुवंशिक सामग्री (DNA) को अपूरणीय क्षति पहुँचती है । जहाँ प्राकृतिक विकिरण का स्तर सामान्यतः हानिरहित होता है, वहीं नाभिकीय दुर्घटनाएँ या युद्धक प्रयोग इस विकिरण को जीवन के लिए सर्वाधिक घातक बना देते हैं। वैज्ञानिक तथ्यों, ऐतिहासिक घटनाओं और समकालिक खतरों के आलोक में इसके प्रभावों का विश्लेषण समझना आवश्यक है।वर्तमान परिस्थितियों में जब इस शक्ति के आतंकवादियों के हाथों में पहुंचने की संभावनाएं जताई जा रही हैं तब हमें इस संभावित आसन्न संकट के प्रति सदैव सचेत रहने की आवश्यकता भी है।
नाभिकीय विकिरण तीन प्रकारों में विभाजित किया जाता है । इनकी भेदन क्षमता और जैविक प्रभाव भिन्न भिन्न होते हैं।
*अल्फा कण (α)*
दो प्रोटॉन और दो न्यूट्रॉन से बने भारी, धनावेशित कण होते हैं। ये त्वचा या कागज की एक परत से रुक जाते हैं, लेकिन श्वास या भोजन के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने पर कोशिकाओं को गंभीर क्षति पहुँचाते हैं। उदाहरण: यूरेनियम-238, रेडॉन-222 ।
*बीटा कण (β)*
उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन जो एल्यूमीनियम पन्नी से रुक जाते हैं। इनका आयनीकरण सामर्थ्य अल्फा कणों की तुलना में कम होता है। उदाहरण: सीज़ियम-137, स्ट्रॉन्शियम-90 ।
*गामा किरणें (γ)*
उच्च ऊर्जा वाली विद्युतचुंबकीय तरंगें हैं,जो कंक्रीट या सीसे की मोटी परतों से ही रोकी जा सकती हैं। ये शरीर के ऊतकों को गहराई तक भेदकर कैंसर जैसे दीर्घकालिक प्रभाव उत्पन्न करती हैं ।
*तीव्र विकिरण सिंड्रोम (ARS)*
अत्यधिक विकिरण (0.75 ग्रे से अधिक) के संपर्क में आने पर मतली, उल्टी, त्वचा में जलन और अस्थि मज्जा दमन जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। यह स्थिति “विकिरण बीमारी” के नाम से जानी जाती है, जो परमाणु विस्फोट या गंभीर औद्योगिक दुर्घटनाओं में देखी गई है । उदाहरण के लिए, हिरोशिमा बमबारी के बाद ग्राउंड जीरो के निकट अधिकांश लोग तुरंत मारे गए या ARS के शिकार हुए।
*दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम*
*कैंसर* – विकिरण DNA को क्षति पहुँचाकर कोशिकाओं में उत्परिवर्तन (mutation) को जन्म देता है। अध्ययनों से पता चलता है कि 100 mSv (मिलीसीवर्ट) का एक्सपोजर भी जीवनकाल में कैंसर के जोखिम को 0.5-1% बढ़ा देता है। फेफड़ों का कैंसर (रेडॉन एक्सपोजर से), थायरॉयड कैंसर (आयोडीन-131 द्वारा) और ल्यूकेमिया प्रमुख प्रकार हैं ।
*हृदय रोग* – उच्च विकिरण रक्त वाहिकाओं को क्षतिग्रस्त कर हृदय संबंधी रोगों का कारण बन सकता है ।
*आनुवंशिक क्षति* – विकिरण जनन कोशिकाओं को प्रभावित कर भावी पीढ़ियों में जन्म दोष और आनुवंशिक विकारों का कारण बन सकता है ।
*संवेदनशील आबादी..*
बच्चे और भ्रूण विशेष रूप से असुरक्षित होते हैं क्योंकि उनकी कोशिकाएँ तेजी से विभाजित होती हैं। गर्भावस्था के दौरान विकिरण का संपर्क भ्रूण के विकास को बाधित कर सकता है, जिससे मानसिक मंदता या शारीरिक विकृतियाँ हो सकती हैं ।
*महत्वपूर्ण उद्धरण*
“विकिरण का जोखिम संपर्क की मात्रा के समानुपाती होता है,उच्च खुराक, उच्च जोखिम, कम खुराक के साथ जोखिम कम हो जाता है, लेकिन शून्य नहीं होता।”
*पर्यावरणीय प्रभाव: चेरनोबिल से फुकुशिमा तक*
1986 की चेरनोबिल संयत्र दुर्घटना ने पर्यावरण पर विकिरण के विनाशकारी प्रभावों को उजागर किया है।
*वनस्पति पर प्रभाव*- विस्फोट के 4 किमी के दायरे में पाइन वृक्ष तुरंत मर गए थे। 120 किमी दूर भी वृक्षों की वृद्धि रुक गई, पत्तियाँ पीली पड़ गईं और प्रजनन क्षमता क्षतिग्रस्त हो गई। ऐस्पन, बर्च जैसी पर्णपाती प्रजातियाँ अधिक प्रतिरोधी थीं, लेकिन उनमें भी अंगमृति (necrosis) देखी गई ।
*जीव-जंतुओं पर प्रभाव*- छोटे स्तनधारी (जैसे चूहों) में यकृत सिरोसिस, प्लीहा वृद्धि और एंजाइम स्तर में कमी पाई गई। मवेशी जो विस्फोट के 6 किमी के दायरे में थे, उनमें अतिगलग्रंथिता (hyperthyroidism) और विकास अवरुद्धता देखी गई ।
– मिट्टी में रेडियोन्यूक्लाइड जमा होने से पारिस्थितिकी श्रृंखला प्रभावित हुई, जिसमें सीज़ियम-137 और स्ट्रोंटियम-90 जैसे तत्वों ने जलीय जीवन को विशेष रूप से प्रभावित किया ।
– वैश्विक फैलाव: रेडियोधर्मी बादल यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका तक फैल गए । गर्म कण (Hot Particles) जैसे यूरेनियम-235 युक्त ईंधन के टुकड़े हजारों किलोमीटर दूर वर्षा के साथ जमीन पर गिरे, जिनका साँस या भोजन के माध्यम से सेवन करना खतरनाक था ।
*दीर्घकालिक पारिस्थितिक परिवर्तन*
यद्यपि मानव गतिविधियों के कम होने से “एक्सक्लूज़न ज़ोन” में जैव विविधता पुनः बढ़ी है, लेकिन विकिरण का प्रभाव बना हुआ है:
*उत्परिवर्तन का प्रसार* – क्षतिग्रस्त DNA वाले जीव दूरस्थ आबादी में फैलकर उनकी फिटनेस को कम करते हैं ।
*खाद्य श्रृंखला में संचय*- रेडियोन्यूक्लाइड्स (जैसे सीज़ियम) मशरूम, जामुन और प्रभावित पक्षियों में जमा होते हैं, जिससे मानव उपभोग के लिए जोखिम बना रहता है ।
*वैज्ञानिक चेतावनी*
“एक ‘सामरिक परमाणु युद्ध’ भी पृथ्वी पर सभी जीवन को बदल सकता है… खाद्य उत्पादन और प्रवासी प्रभाव पहले कभी न देखे गए पैमाने पर होंगे।” — अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता नेटवर्क (2023)
..पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार का वैश्विक खतरा
पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम क्षेत्रीय अस्थिरता और वैश्विक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है।
2023 तक पाकिस्तान के पास लगभग 170 परमाणु हथियार हैं, जिनमें निम्न शामिल हैं-
*वायु आधारित* 36 वारहेड (मिराज III/V विमानों पर तैनात) हैं।
*भूमि आधारित* 126 वारहेड (शाहीन, गजनवी, बाबर मिसाइल प्रणालियों के माध्यम से)।
*समुद्र आधारित* 8 वारहेड (बाबर-3 SLCM क्रूज मिसाइलें, हैं, जिनकी अभी पूर्ण तैनाती नहीं हुई है)।
अमेरिकी खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान शाहीन-III मिसाइलों और क्रूज मिसाइलों के लिए अतिरिक्त वारहेड बनाने की योजना बना रहा है, जिससे उसका शस्त्रागार और विस्तारित हो सकता है ।
*सुरक्षा जोखिम*
– पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और आतंकी समूहों की मौजूदगी से हथियारों की चोरी या अवैध हस्तांतरण का खतरा बना रहता है।
– पाकिस्तान का गैर-जिम्मेदाराना रवैया भी है। भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने पाकिस्तान के परमाणु रवैये को “वैश्विक चिंता का विषय” बताया है और IAEA से इसकी जाँच की माँग की है ।
– दुर्घटना या गलत गणना का जोखिम: सीमा संघर्षों (जैसे ऑपरेशन सिंदूर, 2025) के दौरान परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की धमकी वैश्विक तबाही ला सकती है।
परमाणु संघर्ष से न केवल तात्कालिक विनाश होगा, बल्कि दक्षिण एशिया में रेडियोधर्मी फैलाव भी होगा, जिससे-
– कृषि और जल आपूर्ति दूषित हो जाएगी।
– जनसंख्या विस्थापन का संकट उत्पन्न होगा।
– वैश्विक खाद्य श्रृंखला बाधित होगी ।
*बचाव की तैयारी और सुरक्षा*
परमाणु आपात स्थिति में सही कार्यवाही जीवन बचा सकते है।
*तत्काल आश्रय* विस्फोट के बाद 10 मिनट के भीतर कंक्रीट या ईंट की इमारत के केंद्र या तहखाने में पहुँचें। यह विकिरण एक्सपोजर को 90% तक कम कर सकता है। हिरोशिमा में ग्राउंड जीरो से 170 मीटर दूर तहखाने में छिपा व्यक्ति बच गया था ।
*प्रदूषण नियंत्रण* संदिग्ध विकिरण संपर्क के बाद कपड़ों की बाहरी परत उतारें और त्वचा को गीले कपड़े से पोंछें। दूषित पालतू जानवरों को अलग स्थान पर साफ करें ।
*24 घंटे घर के अंदर रहें* विकिरण का स्तर पहले कुछ घंटों में तेजी से घटता है। बैटरी चालित रेडियो से सूचनाएँ प्राप्त करें ।
नाभिकीय विकिरण एक द्विध्रुवी शक्ति है। चिकित्सा निदान और स्वच्छ ऊर्जा में इसके योगदान को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन इसकी विनाशकारी क्षमता मानवता के अस्तित्व के लिए खतरा बनी हुई है। चेरनोबिल और फुकुशिमा की घटनाएं हमें सिखाती रहती है कि पर्यावरणीय क्षति दशकों तक बनी रहती है। पाकिस्तान जैसे देशों में परमाणु शस्त्रागार का विस्तार इस खतरे को और बढ़ाता है, खासकर राजनीतिक अस्थिरता के संदर्भ में।
वैश्विक समुदाय के लिए यह आवश्यक है कि:
1. परमाणु अप्रसार संधियों को सख्ती से लागू किया जाए।
2. वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन) में निवेश बढ़ाया जाए।
3. आपातकालीन तैयारियों के बारे में जन जागरूकता फैलाई जाए।
आईसीआरपी ने चेतावनी दी है कि “परमाणु विस्फोट से पहले, उसके दौरान और बाद में सुरक्षा के लिए सबसे अच्छा तरीका किसी इमारत या तहखाने के अंदर बीचों-बीच जाना है।” । हमारी सामूहिक सुरक्षा इस बात पर निर्भर करती है कि हम अतीत की गलतियों से कितना सीखते हैं और भविष्य के खतरों के प्रति कितने सतर्क रहते हैं। यही समय है जब सारी दुनिया इन खतरों के प्रति सजग हो और आतंकवादियों का समूल उन्मूलन किया जाए ताकि आतंकवादी शक्तियां नाभिकीय ऊर्जा का दुरुपयोग न कर सकें।
(विवेक रंजन श्रीवास्तव -विभूति फीचर्स)



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