हिमालय के भूभाग में स्थित माँ बंगलाक्षेत्र की पावन भूमि में कल-कल धुन में नृत्य करते हुए बहने वाली भिलगणां नदी का पौराणिक महत्व बड़ा ही विराट है स्कंदपुराण के केदारखण्ड में इसकी महिमां बड़े ही सुन्दर शब्दों में वर्णित है स्वंय भगवान शिव ने इस क्षेत्र का वर्णन करते हुए माता पार्वती से कहा है सकल पापों का नाश करनेवाला भिल्लक्षेत्र प्रसिद्ध है | जहाँ मैं तुम्हारे साथ भिल्ल के रुप में लीला कर चुका हूँ। वहाँ भिल्लांगण नाम का एक अत्यन्त सुन्दर मनोहारी पर्वत है उस पर्वत से रमणीय गंगा की एक अन्य धारा निकली है। वह भिल्लांगणा नाम से प्रसिद्ध एवं महापापों का नाश करनेवाली नदी है वहाँ मेरा लिंग भिल्लेश्वर नाम से प्रसिद्ध है जिसके दर्शन मात्र से मनुष्य के जन्म-जन्मान्तर के पापों का नाश हो जाता है।और स्मरण से महापाप की कोटि में रहनेवाला मनुष्य भी शुद्ध हो जाता है।यही वह क्षेंत्र है जहाँ में भिल्ल रुपी महादेव काले कम्बल का वस्त्र धारण करके मध्य रात्रि में नाना भिल्ल गणों के साथ रहता हूँ वहाँ भिल्लों, भीलों के बजाये हुए बाजों शब्द सुनायी पड़ते हैं। और दिव्य शब्दों का नाद होता रहता है उसके आँगन में अनेकों स्वरुपों में भिल्लगण यहाँ अदृश्य होकर विचरण करते हैं। भिल्लागण में उत्पन्न हुई (मिल्लांगणा) नदी में जो स्नान करता है, यह शिव का ही शरीर धारण करता है स्वंय महादेव ने कहा है यह अत्यन्त गोपनीय पीठ है जिसे पुराणों में भी छिपाया गया है। जो इस क्षेत्र में पहुंचकर आहार -विहार त्यागकर दस रात जप करता है, उसके सारे मंत्र भी निश्चित रूप से सिद्ध हो जाते है। नाथ आदि नित्य यहाँ परायण रहकर सिद्ध हुए है वे सिद्धि प्राप्त करके मेरे जैसे हो गये हैं।
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