इस गाँव में है मात्र तीन लोग पलायन से सूनी हो गयी इस गाँव की रौनक

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इस गाँव में है मात्र तीन लोग पलायन से सूनी हो गयी इस गाँव की रौनक सुन्दर पहाडियों पर बसे इस गाँव ने दिये देश को एक से बढ़कर एक अफसर प्रवासियों के दिया बाती के भरोसे ईष्ट देवता

बागेश्वर/प्रवासियों के दिया बाती के भरोसे ही अब पहाड़ों के ईष्ट देवता है क्योंकि पलायन की पीड़ा आज पहाड़ों की सबसे बड़ी पीड़ा है पलायन की पीड़ा से जूझ रहा एक ऐसा ही गाँव है कुचौली जहाँ अब मात्र तीन लोग है कभी आध्यात्मिक रूप से समृद्ध रहा यह गॉव आज पलायन के चलते दुर्दशा की बीन बजा रहा है हिमालय के आंचल में स्थित कुचौली गाँव आध्यात्मिक रुप से जितना समृद्व है। सौर्दय की छटाओं के लिए उतना ही प्रसिद्ध भी लेकिन पलायन के दंश से अब गाँव की रौनक सूनी हो गयी है अधिकतर घरों में ताले लटक चुके है माँ भद्रकाली के आचार्यो के इस गाँव की गलियां सूनी हो गयी है कुशंण्डी ऋषि की तपोभूमि कुचौली गाँव की सुन्दरता अतुलनीय है। रमणीक पहाडियों के बीच में बसे इस गाँव में ऋषि कुशण्डी का हवन कुण्ड़ अनमोल धरोहर के रुप में गांव के आध्यात्मिक समृद्वशालीता को दर्शाता है
कुचौली के समीपस्थ क्षेत्र में हिमालय के आंचल में स्थित खन्तोली गाँव की चहल पहल भी पलायन के दंश से अब गाँव की रौनक सूनी होती जा रही है। कुचौली गाँव तो लगभग खाली हो चुका है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव व बेरोजगारी के दशं से जूझ रहे युवा रोजगार की तलाश में तेजी से शहरों की ओर पलायन कर रहे है।
राज्य गठन के लगभग 23 वर्ष के अन्तराल में भी पलायन का नासूर ठीक होने का नाम नहीं ले रहा है बल्कि यह और भयानक रूप धारण करता जा रहा है। राज्य गठन के बाद पलायन रुकेगा। प्रदेश की जवानी प्रदेश के विकास में भागीदार बनेगी, यह मात्र कपोल कल्पना ही बन कर रह गयी। जिसका उदराहरण जनपद बागेश्वर के ये ग्रामीण आचंल है।
पूर्व में युवा वर्ग सिर्फ आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण ही पलायन को मजबूर था। घर में दो-चार गाय-भैंसें होती थी। संयुक्त परिवार खेती-बाड़ी का भी काम करता था। घर का एक युवा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मैदानी क्षेत्रों में पलायन करता था। ऐसे परिवार समृद्ध माने जाते थे। तब पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क-बिजली का तो प्रायः अभाव ही था। शहरों की तड़क-भड़क देख युवाओं का रेला पहाड़ से पलायन करने लगा। कई ने तो मैदानी क्षेत्रों में ही घर बसा लिया। एक-दूसरे की देखा-देखी इसमें लगातार वृद्धि हो गयी। इसकी चपेट से ये गाँव भी नहीं आ गये।जब क्षेत्र में गांव के गांव खाली हो गये और मैदानी शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अत्यधिक हो गया तब सरकार की आंख खुली। तुरत-फुरत में पहाड़ को विकसित करने की योजनाएं बनायी जाने लगीं। वर्षों तक ये अधर में लटकी रहीं। बाद में क्रियान्वित भी हुई तो भ्रष्टाचार के साथ। खैर, जैसे-तैसे वर्षों से उपेक्षित क्षेत्रों तक सड़क,की सुविधा तो पहुंची वह भी बदहाल रुप में चिकित्सा, बिजली, आदि की सुविधा पहुंची, वह भी लचर अवस्था में हालांकि कई क्षेत्र अभी भी इन सुविधाओं से महरूम हैं। उक्त सुविधाओं के बावजूद पहाड़ी क्षेत्रों में अभी भी रोजगारपरक उद्योगों का अभाव है जिस कारण युवा पलायन को मजबूर हैं। पलायन का मुख्य कारण ही परिवार की माली हालत रहती है। कुछ हद तक शहरों का विकास और आसानी से मिल रही हर सुविधा भी इसके लिए उत्तरदायी है।
गौरतलब है कि पहाड़ी क्षेत्रों का विकास मैदानी क्षेत्रों की तर्ज पर नहीं हो सकता। भौगोलिक परिस्थितियां इसमें बाधक बनती हैं। फिर भी पहाड़ों में लघु उद्योग स्थापित कर इस समस्या से कुछ हद तक निजात मिल सकती है। जड़ी-बूटी उद्योग इसमें सबसे अधिक कारगर भूमिका निभा सकता है। उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में जड़ी-बूटियों का अपार भंडार है। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार व वर्तमान सरकारो ने इस दिशा में अच्छी पहल की, लेकिन जब तक युवा वर्ग इस उद्योग से जुड़कर आत्मनिर्भर नहीं हो जाता, तब तक यह मिशन पूरा नहीं हो सकता। कांग्रेस सरकार ने लघु उद्योग के रूप में मशरूम उत्पादन की जोर-शोर से पहल की थी, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ सकी। कई युवाओं ने इसे आजीविका के साधन के रूप में अपनाया, लेकिन पर्याप्त उत्पादन व मार्केटिंग की उचित व्यवस्था न होने के कारण यह सफल नहीं हो सका। इस उद्योग को प्रोत्साहन देकर काफी हद तक पलायन पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा प्रदेश में पर्यटन की अपार संभावनायें हैं। कई दर्शनीय स्थल हैं तो कई आध्यात्मिक केन्द्र भी हैं। प्रदेश की सदाबहार नदियों में साहसिक पर्यटन की भी अच्छी संभावनाएं हैं। पर्यटन के क्षेत्र को विकसित कर पलायन रोकने की पहल की जानी चाहिए पहाड़ी क्षेत्रों में पैदा होने वाला खाद्यान्न काफी पौष्टिक होता है। पलायन के कारण आज लोगों के खेत बंजर पड़े हैं। जो लोग पहाड़ों में रह रहे हैं, परिश्रम के अनुरूप उत्पादन न होने के कारण खेती नहीं कर रहे हैं। सिंचाई, बिजली व अन्य सुविधायें उपलब्ध करा कर इस ओर व्यापक प्रयास की जरूरत है। खन्तोली व कुचौली में वीरान क्षतिग्रस्त घर और बंजर पड़े खेत पलायन के दर्द को खुद ही बयां कर रहे हैं। पहाड़ी शहरो, नगरों या कस्बों में चिकित्सा, शिक्षा, पेयजल, विद्युत, सड़क आदि सुविधाओं के विस्तार के चलते जनसंख्या घनत्व लगातार बढ़ रहा है। जबकि ग्रामीण इलाके जनसंख्या शून्य होते जा रहे हैं। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण खन्तोली व कुचौली सहित आस पास के अनेक गांवों की सूनी तस्वीरे है। आसपास के गांवों का भी यही हाल है। यदि आगें इस पर नियत्रंण का प्रयास करना है तो
मूलभूत सुविधाएं ग्रामीण क्षेत्रों तक उपलब्ध करानी होंगी। अभी भी कई दूरस्थ क्षेत्रों में चिकित्सा व शिक्षा जैसी सुविधाओं का अभाव है। कहीं चिकित्सालय हैं तो डाक्टर नहीं, स्कूल हैं तो शिक्षक नहीं। क्षेत्रों में यह स्थिति बड़ी विकट है जनपद मुख्यालय से लगभग चालीस किमी की दूरी पर स्थित खन्तोली गाँव ने देश को एक से बढ़कर एक अफसर दिए है। जटिल परिस्थितयों में शिक्षा ग्रहण करके इस गाँव के लोगों ने देश भर में नाम रोशन किया है। गॉव के हर आगंन से एक अफसर निकला है। काड़ा विजयपुर मार्ग से लगभग चार किमी की दूरी पर स्थित इस गाँव में व इसके आसपास के गाँवों में पहाड़ जैसी समस्याओं का अम्बार है। तमाम प्रकार के झंझावतों को झेलनें के बाद भी समूचे उत्तराखण्ड़ में इस गाँव की अपनी एक अलग पहचान है*।इस गाँव के निकली प्रतिभाओं की लम्बी सूची है। आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, आईएफएस, सेना में अफसर , चिकित्सा, इंजीनियर , व्यवसाय, शिक्षा व विज्ञान के क्षेत्र इस गाँव ने समूचे देश में नाम रोशन किया है। कुमाऊँ में सर्वप्रथम बिजली की रोशनी पहुचानें का कार्य भी इस गाँव के इजीनियर रामचन्द्र पंत की देखरेख में हुआ आजादी के अविस्मरणीय योगदान में पूर्णानन्द पंत, पुरुषोत्तम पंत, चन्द्रशेखर पंत, देवी दत्त पंत, हरिदत्त पंत, नारायणदत्त पंत आदि का नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज है।कुल मिलाकर वर्तमान समय में खन्तोली की खनक पलायन से फीकी पड़ गयी है। और पास स्थित कुचौली गांव वीराने की ओर अग्रसर है।

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