तेजस एमके1ए: भारत की आत्मनिर्भर रक्षा शक्ति का नया अध्याय

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भारत की आत्मनिर्भर रक्षा शक्ति को एक नई बुलंदी मिली जब देश के उन्नत स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस एमके1एने ने सफलतापूर्वक अपनी पहली उड़ान भरी। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के नासिक स्थित एयरक्राफ्ट मैन्यूफैक्चरिंग डिविजन से इस लड़ाकू विमान ने उड़ान भरकर आसमान में अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। इस ऐतिहासिक पल के गवाह खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह बने, जिन्होंने इस उपलब्धि को देश के लिए एक मील का पत्थर बताया।
तेजस की यह पहली उड़ान भारत में अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के निर्माण की दिशा में एक बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है। इस विशेष अवसर पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एलसीए एमके1ए की तीसरी प्रोडक्शन लाइन का भी उद्घाटन किया, जिससे विमानों के उत्पादन में और तेजी आएगी।
इससे पहले रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एचएएल के नए ‘मिनी स्मार्ट टाउनशिप’ प्रोजेक्ट का उद्घाटन करते हुए संस्थान की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा कि एचएएल ने इस प्रोजेक्ट के जरिए सस्टेनेबल डेवलपमेंट (सतत विकास) में एक मिसाल कायम की है। राजनाथ सिंह ने कहा, “जब पूरी दुनिया पर्यावरण बचाने की बात कर रही है, ऐसे में HAL का यह मॉडल दूसरी इंडस्ट्रीज के लिए एक बेंचमार्क बनेगा।”

हालांकि, तेजस एमके1ए को भारतीय वायुसेना के बेड़े में कब शामिल किया जाएगा, इसकी आधिकारिक तारीखों का ऐलान अभी नहीं हुआ है। लेकिन, एचएएल के अनुसार, आने वाले चार वर्षों के भीतर भारतीय वायुसेना को 83 तेजस मार्क1ए लड़ाकू विमानों की आपूर्ति कर दी जाएगी। बताया जा रहा है कि अमेरिकी इंजन की आपूर्ति में देरी के कारण इसके निर्माण में कुछ विलंब हुआ है।
गौरतलब है कि नासिक स्थित एचएएल की डिविजन में हर साल आठ लड़ाकू विमान बनाने की क्षमता है। इसके अलावा बेंगलुरु में स्थित दो प्रोडक्शन लाइनों पर हर साल 16 तेजस विमान बनाए जाते हैं। नई प्रोडक्शन लाइन शुरू होने से यह क्षमता और भी बढ़ जाएगी, जिससे वायुसेना की ताकत में अभूतपूर्व वृद्धि होगी।
स्वदेशी लड़ाकू विमान तेजस एलसीए मार्क 1ए का पहली बार उड़ान भरना निःसंदेह देश को गौरवान्वित करने वाला है, क्योंकि विमानन और रक्षा आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक उपलब्धि है। इस लड़ाकू विमान का उड़ान भरना भारत की रक्षा उद्योग की परिपक्वता, नीति-दिशा और दीर्घकालिक रणनीति को प्रमाणित करने के साथ ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ अभियानों को एक नई ऊर्जा प्रदान करता है। यह इस बात का संकेत है कि रणनीतिक दृष्टिकोण और राजनीतिक इच्छाशक्ति से कैसे सामरिक क्षमताओं को सहजता से एकीकृत किया जा सकता है।

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इस उपलब्धि को सिर्फ एक तकनीकी मील का पत्थर नहीं मानना चाहिए, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता तथा विदेश नीति में बदलती परिदृश्यों के बीच विवेकपूर्ण संतुलन का प्रतिबिंव है। दरअसल तेजस मार्क 1ए का लगभग 65 प्रतिशत हिस्सा भारत में निर्मित है और यह एक उन्नत, बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है। यह स्वदेशी 4.5-पीढ़ी का विमान है, जो सभी मौसमों में काम करने के लिए हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा विकसित किया गया है। लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एलसीए) का यह एडवांस वर्जन है और यह चौथी पीढ़ी का मल्टी-रोल फाइटर जेट है हल्का, तेज और सटीक वार करने में सक्षम है। सबसे बड़ी बात है कि यह हर मौसम, दिन-रात और हर ऑपरेशन में यह पूरी तरह सक्षम है। यह विमान 5.5 टन से अधिक हथियार ले जाने की क्षमता रखता है और एक साथ कई लक्ष्यों पर हमला कर सकता है। इसमें एईएसएस रडार, वियॉन्ड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइल सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट और हवा में ईंधन भरने की सुविधा है। एक और बड़ी बात है कि इस विमान में किसी भी अपग्रेड या बदलाव के लिए भारत को विदेशी अनुमति की जरूरत नहीं होगी। यह पूरी तरह से मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत की भावना को आगे बढ़ाने वाला प्रोजेक्ट है। इस विमान के निर्माण से देश के रक्षा और एयरस्पेस उद्योग को नई दिशा मिली है और यह सिर्फ एक विमान नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी क्षमता और इंजीनियरिंग कौशल का प्रतीक है। इसलिए तेजस मार्क-1ए की पहली उड़ान न केवल भारत की वैज्ञानिक और औद्योगिक उपलब्धि है, बल्कि यह देश की रणनीतिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है।

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रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा है कि इससे वायु सेना की ताकत कई गुना बढ़ जायेगी। उन्होंने बताया कि एक समय था जब देश अपनी रक्षा जरूरतों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर था और लगभग 65-70 प्रतिशत रक्षा उपकरण आयात किए जाते थे, लेकिन आज यह स्थिति चदल गई है। अब भारत 65 प्रतिशत विनिर्माण अपनी धरती पर कर रहा है। बहुत जल्द, हम अपने घरेलू विनिर्माण को भी 100 प्रतिशत तक ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि भारत का रक्षा निर्यात रिकॉर्ड 25 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जो कुछ साल पहले एक हजार करोड़ रुपये से भी कम था। रक्षा मंत्री ने कहा कि हमने अब 2029 तक घरेलू रक्षा विनिर्माण में तीन लाख करोड़ रुपये और रक्षा निर्यात में 50 हजार करोड़ रुपये हासिल करने का लक्ष्य रखा है। नासिक स्थित एचएएल की एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग डिविजन में हर साल आठ लड़ाकू विमानों का निर्माण करने की क्षमता है। इसके अलावा बंगलूरू में तेजस की दो प्रोडक्शन लाइन स्थित हैं, जहां हर साल 16 लड़ाकू विमान बनाए जा रहे हैं। इस तरह नासिक की प्रोडक्शन लाइन शुरू होने के बाद हर साल 24 लड़ाकू विमानों का निर्माण होगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि पिछले 11 वर्षों में, भारत हथियारों के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो चुका है और स्वदेशी उत्पादन के उभरते केंद्र में तब्दील हो गया है। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता एक मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है, जिसने स्थानीय डिजाइन, विकास और विनिर्माण को प्राथमिकता देने वाली नीतियों को प्रेरित किया है। सरकारी सुधारों, रणनीतिक निवेशों और उद्योग साझेदारियों ने नवाचार को बढ़ावा दिया है और घरेलू क्षमताओं को मजबूत किया है। दरअसल रक्षा बजट में लगातार वृद्धि देखी गई है, जो 2013-14 में 2.53 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2025-26 में 6.81 लाख करोड़ रुपये हो गया है। 2024-25 में, भारत ने 1.50 लाख करोड़ का अपना अब तक का सर्वोच्च रक्षा उत्पादन हासिल किया, जो 2014-15 में दर्ज 46,429 करोड़ से तीन गुना अधिक है। भारत का रक्षा निर्यात 2013-14 में 686 करोड़ रुपये से बढ़कर 25 हजार करोड़ रुपये हो गया है, ये 36 गुना वृद्धि है, जो आत्मनिर्भर और विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी रक्षा उद्योग के लिए सरकार के प्रयास को रेखांकित करता है। सरकारी नीतिगत सुधारों, व्यापार सुगमता पहलों और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयासों से प्रेरित होकर, भारत अब 100 से अधिक देशों को निर्यात करता है। 2023-24 में भारत के रक्षा निर्यात के लिए शीर्ष तीन गंतव्य अमेरिका, फ्रांस और आर्मेनिया थे। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता से कई फायदे हो रहे हैं, इससे एक तरफ विदेशी मुद्रा की बचत हो रही है, तो दूसरी ओर स्थानीय उद्योग सशक्त हो रहे हैं। भारत इसी गति और प्रगति के साथ आगे बढ़े, तो एशिया में सामरिक संतुलन पर भारत की भूमिका और अधिक निर्णायक हो सकती है। चीन, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ संतुलित शक्ति स्थिति बनाए रखना, विशेष रूप से सीमाई तनावों के समय, यह कदम भारत को अधिक हिम्मत और स्वायत्तता देता है। हालांकि एक सफल उड़ान एक प्रारंभिक सफलता है, शत-प्रतिशत सफलता हासिल करना अभी शेष है। इसे बेहतर तरीके से व्यवहारिक, युद्ध-योग्य विमान बनाने की राह अभी लंबी है। मगर इसके बावजूद तेजस मार्क 1ए का सफल प्रथम उड़ान भारत के आत्मविश्वास, तकनीकी साहस और राष्ट्रनिर्माण की महत्वाकांक्षा का द्योतक है। यह सिर्फ एक विमान का उड़ान भरना नहीं, बल्कि यह एक बदलाव की शुरुआत है, एक संकल्प की अभिव्यक्ति कि भारत अब सिर्फ खरीदार नहीं, निर्माता बनेगा। लेकिन इस उपलब्धि को सफलतम रूप देने के लिए निरंतर प्रयास, दूरदृष्टि, संसाधनों का समुचित प्रबंधन और समयबद्ध क्रियान्वयन जरूरी है। यदि यह संतुलन बना रहे तो भारत न सिर्फ रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर होगा, बल्कि उन देशों की कतार में खड़ा हो जाएगा, जो रक्षा उपकरणों, तकनीकी नवाचार और सामरिक क्षमता में वैश्विक मानदंड तय करते हैं। इसलिए निःसंदेह तेजस मार्क 1ए उस सपने की उड़ान की शुरुआत है।

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(मनोज कुमार अग्रवाल-विभूति फीचर्स)

 

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