मोबाइल फोन में घुसकर ऑनलाइन लाइटिंग,सजावट का सामान और कपड़े तलाशने में समय बर्बाद करने की बजाए एक बार सपरिवार घर से बाहर निकलिए और सड़क पर दिए बेचती बूढ़ी अम्मा की आंखों में पलती उम्मीदों की रोशनी देखिए या फिर रंगोली के रंग फैलाए उस नहीं सी बालिका के चेहरे पर चढ़ते उतरते रंग महसूस कीजिए..क्या आप हम इस बार ऐसे ही किसी व्यक्तिया परिवार के घर में उम्मीदों का दिया नहीं जला सकते?
हमें करना ही क्या है…बस,इस बार स्थानीय और खासतौर पर पटरी पर बाज़ार सजाने वालों से खरीददारी करनी है और अपने बच्चों में भी यही आदत डालनी है। जाहिर सी बात है रोशनी, खुशहाली, समृद्धि और सामूहिकता का पर्व दीपावली क़रीब है। घर घर में सफाई,रंगाई पुताई और दीप पर्व से जुड़ी तैयारियों का दौर जारी है इसलिए सामान खरीदने का दौर भी शुरू हो गया है।
दीप पर्व केवल रोशनी और खुशियों का प्रतीक भर नहीं है, बल्कि यह सामुदायिक एकजुटता और आर्थिक सहयोग का भी अवसर है। इसलिए,इस दीवाली जब हम बाजारों में रंग-बिरंगे दीयों, मिठाइयों, और सजावटी सामानों की खरीदारी के लिए निकलें, तो अपनी आदत में क्यों न एक छोटा सा बदलाव लाएं ? इस बार, बिना मोलभाव के लोकल और पटरी विक्रेताओं से खरीदारी करें और त्योहार के असली मायने को और गहरा करें।
बिना मोलभाव के खरीदारी करना न केवल आपके त्योहार को खास बनाएगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगा। पटरी बाजार के लिए हर बिक्री न केवल आजीविका का साधन है, बल्कि परिवार के पोषण, बच्चों की पढ़ाई, और त्योहार की तैयारी का आधार भी है। एक छोटे विक्रेता के लिए, 10-20 रुपये की कीमत कम करना भी उनके दिन के कुल मुनाफे को प्रभावित कर सकता है। दीवाली जैसे व्यस्त मौसम में, जब उनकी बिक्री साल भर की कमाई का बड़ा हिस्सा होती है, मोलभाव उनके लिए बोझ बन सकता है। बिना मोलभाव के खरीदारी करके आप उनकी मेहनत का सम्मान करते हैं और उन्हें त्योहार की असली खुशी देते हैं।
हम सात सौ रुपए का पिज़्ज़ा, दो सौ का बर्गर और तीन सौ रुपए की कॉफी बिना मोलभाव के खा पी लेते हैं लेकिन साल में एक बार मिट्टी के दर्जन भर दिए खरीदने के लिए मोलभाव में कोई कसर नहीं छोड़ते। हम मल्टीप्लेक्स में चार सौ रुपए का पॉपकॉर्न चुपचाप ले लेते हैं लेकिन कागज़ की झालर,तोरण और बिजली का लड़ी खरीदते समय इतना भाव ताव करते हैं जैसे अमेरिका चीन से कोई व्यापारिक समझौता कर रहे हों।
हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि देश में बढ़ती ऑनलाइन खरीदारी स्थानीय बाजारों मसलन किराना दुकानें, पटरी विक्रेता और छोटे रिटेलर पर गहरा प्रभाव डाल रही है। 2025 तक, ई-कॉमर्स बाजार का मूल्य लगभग 10 लाख करोड़ रुपये पहुंच चुका है, जो 2024 की तुलना में 14 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत का कुल रिटेल बाजार 2024 में लगभग 1.4 ट्रिलियन डॉलर का है, जिसमें ई-कॉमर्स का योगदान 8 फीसदी है और 2028 तक यह हिस्सेदारी बढ़कर 14 फीसदी हो जाएगी, जिससे ऑफलाइन रिटेल का शेयर 92 प्रतिशत से घटकर 86 फीसदी रह जाएगा।
हमारे मोबाइल में घुसकर खरीददारी करने और बढ़ती ऑनलाइन खरीदारी के कारण छोटे रिटेलरों की बिक्री में 15-20 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है । एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022-2024 के बीच 1-2 लाख छोटे स्टोर्स बंद हो चुके हैं या डिजिटल प्लेटफॉर्म्स में बदल गए हैं। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि रिटेल सेक्टर भारत में 4 करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार देता है। ई-कॉमर्स की वृद्धि से 5-7 लाख नौकरियां प्रभावित हुई हैं। इनमें मुख्य रूप से पटरी विक्रेताओं और छोटे दुकानदारों से जुड़ी नौकरी शामिल हैं ।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्थानीय अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करते रहे हैं और इसे वे आत्मनिर्भरता का जरिया मानते थे। वैसे भी, लोकल और पटरी विक्रेता भारतीय बाजारों की रीढ़ हैं। ये वे लोग हैं जो सुबह जल्दी उठकर अपने स्टॉल सजाते हैं, मिट्टी के दीये बनाते हैं, हस्तनिर्मित सजावटी सामान तैयार करते हैं, और स्थानीय स्वाद वाली मिठाइयां बेचते हैं। इनके उत्पाद न केवल पर्यावरण के लिए बेहतर हैं, बल्कि ये हमारी सांस्कृतिक विरासत को भी जीवित रखते हैं। इन विक्रेताओं से खरीदारी करके आप हम न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करते हैं, बल्कि बड़े कॉरपोरेट्स पर निर्भरता को भी कम करते हैं।
आइए,इस दीवाली रोशनी के साथ-साथ अपने करीबी बाजार को भी रोशन करें। बिना मोलभाव के खरीदारी करें एवं त्योहार की असली खुशियों को फैलाकर सभी के लिए दीवाली शुभ बनाए और घर घर में जलाएं एक दिया उम्मीदों का।
(संजीव शर्मा -विनायक फीचर्स)











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