*जनता की अदालत में असफल साबित होते केजरीवाल*
( डॉ. हितेश वाजपेयी)
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आ चुके हैं।एक चालक और चतुर राजनीतिज्ञ की तरह उन्होंने भी अब अपने पैंतरे आजमाने शुरू कर दिए हैं।अन्ना आंदोलन के समय जनता को लुभाने वाले अरविंद केजरीवाल ने मुख्यमंत्री के रूप में कई जनकल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत करके एक समय जनता का अपार समर्थन हासिल किया था लेकिन आज वे उन्हीं लोगों की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर रहे, जिन्होंने उन्हें सत्ता में बैठाया था।
*वादों और हकीकत का अंतर*
केजरीवाल ने राजनीति में प्रवेश करते समय भ्रष्टाचार और पारदर्शिता के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। उन्होंने जनता से वादा किया था कि उनकी सरकार जनता के प्रति जवाबदेह होगी और हर निर्णय पारदर्शी होगा। लेकिन समय के साथ, इन वादों और हकीकत के बीच एक गहरी खाई बन गई। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार के आरोपों ने उनकी ईमानदार छवि को धुंधला कर दिया है, जिससे जनता का भरोसा टूटता जा रहा है।
*राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल*
केजरीवाल ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत अन्य दलों की नीतियों और नेताओं की आलोचना से की थी, लेकिन अब वे स्वयं भी उसी राजनीतिक खेल का हिस्सा बन गए हैं। आज जब भी कोई मुद्दा उठता है, केजरीवाल ज्यादातर केंद्र सरकार, उपराज्यपाल या अन्य विपक्षी पार्टियों पर दोष मढ़ने की कोशिश करते हैं, बजाय इसके कि वे खुद अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करें। जनता को एक नेता से जवाबदेही की उम्मीद होती है, लेकिन केजरीवाल इस कसौटी पर कई बार विफल होते दिखाई दिए हैं।
*जनता के मुद्दों से दूरी*
शुरुआत में केजरीवाल ने बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर ध्यान दिया था, जिससे जनता ने उन्हें व्यापक समर्थन दिया लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इन मुद्दों पर उनकी पकड़ ढीली पड़ती नजर आ रही है। जनता से किए गए वादों को पूरा करने के बजाय, वे अधिकतर प्रचार और विज्ञापनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उनके द्वारा किए गए बड़े-बड़े दावों और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर है, जिसे जनता अब पहचानने लगी है।
*स्वच्छ राजनीति का दावा कमज़ोर पड़ा*
एक समय, केजरीवाल की पार्टी ‘स्वच्छ राजनीति’ की मिसाल के रूप में जानी जाती थी लेकिन आज उनके अपने ही कई नेता और विधायक भ्रष्टाचार, अराजकता और अनैतिक कार्यों में लिप्त पाए गए हैं। इससे केजरीवाल की छवि को गहरा धक्का लगा है, और जनता ने उन्हें उस आदर्श नेता के रूप में देखना बंद कर दिया है जो वे पहले थे।
*पारदर्शिता और जबावदेही का अभाव*
अरविंद केजरीवाल जनता की अदालत में इसलिए फेल हो रहे हैं, क्योंकि वे अपने वादों और जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे हैं।उनकी सरकार में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी ने जनता के विश्वास को कमजोर किया है। जनता को वादे नहीं, बल्कि काम चाहिए, यह केजरीवाल को यह समझना होगा।
(विभूति फीचर्स)
लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 वॉट्स्ऐप पर हमारे समाचार ग्रुप से जुड़ें