पन्त दम्पति ने वैदिक विधि विधान से मनाया दाम्पत्य जीवन का स्वर्ण जयन्ती समारोह समाज में अनुकरणीय है श्रीमती जया पन्त व श्री किशन चन्द्र पन्त का आदर्श वैवाहिक जीवन

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पन्त दम्पत्ति ने वैदिक विधि-विधान से मनाया दाम्पत्य जीवन का स्वर्ण जयन्ती समारोह
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+ समाज में अनुकरणीय है श्रीमती जया पन्त व श्री किशन चन्द्र पन्त का आदर्श वैवाहिक जीवन
+ सेवाकाल में कर्तव्य निष्ठा के
चलते श्री पन्त ने अर्जित की अद्भुत ख्याति
+ सेवानिवृत्ति के बाद से समर्पित समाजसेवी के रूप में बनाई नई पहचान
+ पूर्वजों की सेवा परम्परा को लगातार बढ़ा रहे हैं आगे

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हल्द्वानी ( नैनीताल ), आज के भौतिकवादी समाज में जहाँ एक ओर सनातन वैदिक मूल्यों तथा सामाजिक व सांस्कृतिक परम्पराओं को अधिकांश लोग भूलते जा रहे हैं वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जो आधुनिक जीवन शैली के साथ ही अपने सामाजिक मूल्यों व सांस्कृतिक परम्पराओं को जीवन्त बनाये रखने हेतु उन्हें लगातार सींचने व संवारने के प्रयास करते आ रहे हैं और समाज में अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं

मूल रूप से जनपद पिथौरागढ़ के बना ग्राम निवासी व हाल निवासी हल्द्वानी- ऊंचापुल निवासी किशन चन्द्र पन्त व उनकी धर्म पत्नी जया पन्त ऐसे ही लोगों में शामिल हैं जो अपनी सांस्कृतिक ‘ विरासत व सामाजिक परम्पराओं के प्रति जीवन भर सजग व समर्पित रहे हैं। बीते 26 मई 2024 को इस दम्पत्ति द्वारा अपने सुखद दाम्पत्य जीवन का स्वर्ण जयन्ती समारोह सनातनी वैदिक विधि-विधान के साथ आयोजित किया गया और इस भव्य – दिव्य आयोजन के जरिये समाज को अपनी जड़ो से जुड़े रह कर आगे बढ़ने का सन्देश दिया ।

अपने सफल दाम्पत्य जीवन के स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर पन्त परिवार में प्रातःकाल पूजन-अर्चन, हवन-यज्ञ, आरती व अन्य धार्मिक अनुष्ठान सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ सम्पन्न हुए। अपराहन में श्रीराम चरित मानस के सुन्दर काण्ड का पाठ हुआ, जिसमें उनके मित्र, परिजन, शुभ चिन्तक एवं अड़ोस-पड़ोस के लोगों ने सामूहिक पाठ किया । सायंकाल पुनः पूजा- पाठ, आरती के पश्चात उपस्थित लोगों द्वारा बधाई गीत गा कर पन्त दम्पत्ति के स्वस्थ जीवन की कामनाएं की । तत्पश्चात प्रसाद वितरण, भोजन आदि के कार्यक्रम सम्पन्न हुए। इस मौके पर उपस्थित लोगों ने कहा कि श्रीमती जया पन्त व श्री किशन पन्त का जीवन सदैव अनुशासित , सन्तोषप्रद व सरल रहा है। उनका सफल वैवाहिक जीवन वास्तव में समाज के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण है ।

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एक मुलाकात में भावुक होकर श्री किशन चन्द्र पन्त ने कहा कि उनके सरल व सन्तोषप्रद वैवाहिक जीवन में उनकी माता जी स्वर्गीय प्रभा पन्त और पिता जी स्वर्गीय गोकुलानन्द पन्त द्वारा बचपन में दिये गये संस्कारों तथा समय – समय पर दी गयी अनमोल सीख का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि माता-पिता की कृपा से ही उनका जीवन धन्य हुआ है।

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि श्री किशन चन्द्र पन्त मूलतः जनपद पिथौरागढ़ अन्तर्गत बेरीनाग क्षेत्र के बना गाँव के रहने वाले हैं और वर्तमान में अपनी धर्म पत्नी श्रीमती जया पन्त और दो पुत्रों- बहुओं तथा नाती – पोतों के साथ ऊंचापुल हल्हानी में सुखपूर्वक अपना जीवन बिता रहे हैं।

श्री किशन चन्द्र पन्त तीन भाइयों व एक बहिन में सबसे बड़े हैं। दो छोटे भाई- गणेश पन्त व शंकर पन्त हल्द्वानी में ही अपने-अपने परिवारों के साथ निवास करते हैं।
81 वर्षीय श्री किशन पन्त का अपना भरा पूरा परिवार है। परिवार के सभी सदस्य समाज की सेवा के लिए सदैव तत्पर रहते हुए अपने बुजुर्गों द्वारा शुरू की गयी सेवा परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं।
श्रीमती जया पन्त व किशन चन्द्र पन्त के दो पुत्र हैं । बड़े पुत्र पंकज पन्त की तरह ही छोटे पुत्र भूपेश पन्त भी उच्च शिक्षा प्राप्त हैं और सम्मान जनक सेवाओं में है।
पंकज पन्त व उनकी धर्म पत्नी विनिता पन्त की मेधावी सुपुत्री वर्णिभा पन्त वर्तमान में एआईआईएमएस एम्स देवधर झारखण्ड से एम बी बी एस की पढ़ाई कर रही हैं जबकि छोटे पुत्र भूपेश व उनकी धर्म पत्नी दीवाली पन्त का एक पुत्र ध्रुपद पन्त अभी विद्यालयी शिक्षा ग्रहण करते हुए शानदार भविष्य की ओर बढ़ रहा है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि किशन पन्त ने इकतीस वर्ष तक सेंट्रल पैरा मिलिट्री फोर्स के कम्यूनिकेशन विंग में बतौर सबओर्डिनेट ऑफीसर अपनी महत्वपूर्ण सेवाएं दी और फरवरी 1997 में तीन वर्ष पहले ही स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली थी। श्री पन्त ने देश के अलग-अलग प्रदेशों व महानगरो में अपनी शानदार सेवाओं के बल पर विभाग में एक अलग ही पहचान बनाई

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श्री किशन पन्त ने आन्ध्र प्रदेश, त्रिपुरा, पजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, जम्मू कश्मीर, राजस्थान, आसाम, बिहार, मध्य प्रदेश समेत देश के दर्जनभर से अधिक राज्यों में तथा इन राज्यों के अलग-अलग शहरों में अपनी सेवाएं देकर सरकारों, विभागों, विविध संस्कृतियों, विविध समाज व विविध परम्पराओं एवं जीवन शैली का एक विराट अनुभव हासिल किया और हर प्रदेश में अपने सेवा कौशल, निष्ठा व समर्पण के लिए अनेक पुरुस्कार प्राप्त किये। पंजाब में सेवा अवधि के दौरान तत्कालीन डीजी पंजाब , के पी एस गिल के साथ काम करने का उन्हें मौका मिला । तब उन्हें कम्यूनिकेशन विंग की ओवर आल जिम्मेवारी दी गयी थी। यही कारण भी था कि सेवानिवृत्ति के समय श्री पन्त को एक्जैम्पलरी रिमार्क ( उदाहरणीय प्रतीक चिन्ह ) से भी सम्मानित किया गया था।

फरवरी 1997 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने के बाद श्री किशन पन्त ने सरकारी सेवाकाल में प्राप्त लम्बे जमीनी अनुभवों को समाज के हित साझा करने का मन बनाया और एक-एक कर कई सामाजिक संस्थाओ से जुड़ते चले गये ‘ सबसे पहले अखिल भारतीय मानवाधिकार संगठन से जुड़ कर काम करना शुरू किया और 8-10 वर्ष तक प्रदेश स्तर पर इस संगठन में रह कर अनेक जिम्मेवारियां निभाई । इसी दरमियान वह अर्द्ध सैनिक सेवानिवृत्त बल के संगठन से भी जुड़ गये और संगठन के जनरल सेक्रेटरी के साथ ही प्रवक्ता के रूप में भी अपनी भूमिका निभाई ।वर्ष 2007 किशन पन्त आई ए सी ( india against Corruption ) नाम की सामाजिक संस्था के लिए भी काम किया, लेकिन कतिपय कारणों से बाद में स्वयम् को इससे अलग कर लिया।
श्री किशन पन्त ने सामाजिक सेवाओं में दिनों दिन अपनी भागीदारी बढ़ानी आरम्भ कर दी और जहाँ भी उन्हें लगा कि अमुक संस्था के माध्यम से लोगों के काम हो सकते थे, उन संस्थाओं से जुड़ते चले गए।
आपने गर्जिया मन्दिर में भी बतौर सचिव अपनी सेवाएं दी हैं और लम्बे समय तक सामाजिक कार्यों में तत्पर रह कर समय- समय पर जरूरतमंदों की मदद कराई । इसके अलावा बद्री-केदार मन्दिर ट्रस्ट मे भी सदस्य के रूप में कार्य किये। वर्तमान में श्री किशन चन्द अल्मोड़ा स्थित प्रेमा जोशी ट्रष्ट का सुचारू पूर्वक संचालन कर रहे हैं। दरअसल बचपन से ही सेवा भावी रहे किशन चन्द्र पन्त ने गांव में युवक मंगल दल का अध्यक्ष बनने के साथ ही सामाजिक कार्यों में भागीदारी करनी आरम्भ कर दी थी, आगे चलकर व्यापक स्तर कार्य करते हुए आज भी अपने परिवार की सेवा परम्परा को बखूबी निभा रहे हैं।
श्री किशन पन्त से आज के युवाओं को सन्देश के बाबत पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि देश का हर युवा सिर्फ और सिर्फ अपने उज्जवल भविष्य की चिन्ता करें और साथ ही देश की चिन्ता करें। जिस दिन युवाओं में यह भाव प्रबल हो जायेगा, उस दिन समाज व देश की ज्यादातर समस्याएं स्वतः हल हो जायेंगी।
मदन जलाल मधुकर

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