लालकुआं ( नैनीताल ), मध्य प्रदेश के दतिया स्थित श्री हनुमान धाम में आगामी 7 नवम्बर 2024 को आयोजित हो रहे बगलामुखी महायज्ञ के अवसर पर ” जय माँ बगलामुखी ” पुस्तक का भी भव्य विमोचन किया जायेगा।
वरिष्ठ पत्रकार रमाकान्त पन्त द्वारा पूर्व जज स्व० उमाशंकर पाण्डेय की मधुर स्मृति में यह पुस्तक लिखी गयी है। पुस्तक में दश महाविद्याओं में से आठवीं प्रमुख महाविद्या बगलामुखी देवी ( पीताम्बरी माई ) की अलौकिक महिमा का सुन्दर वर्णन बड़ी ही सरल शैली में किया गया है। देवभूमि उत्तराखण्ड में माँ बगलामुखी देवी के प्राचीन, गोपनीय व गुमनाम तीर्थों और उनके दिव्य रहस्यों पर पुस्तक में विशेषरूप से प्रकाश डाला गया है और मॉ बगलामुखी से जुड़े देवभूमि के धर्म स्थलों का देश-दुनिया के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है। पुस्तक में शोधपरक व ज्ञानवर्द्धक सामग्री को समाहित करने की भरसक कोशिश की गयी है, ताकि धर्मप्रेमी, संस्कृति प्रेमी, आध्यात्म प्रेमी और विशेषतः मॉ बगलामुखी देवी के भक्त लाभान्वित हो सकें ।
तीर्थाटन व धार्मिक पर्यटन पर केन्द्रित यह पुस्तक उत्तराखण्ड में पर्यटन को बढ़ावा देने में भी अत्यधिक उपयोगी व महत्वपूर्ण मानी जा रही है। दतिया के हनुमान धाम में देशभर से पहुंच रहे मॉ बगलामुखी के तमाम साधकों व श्रद्धालुओं की गौरवमयी उपस्थिति में पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम सम्पन्न होगा।
यहाँ बताते चलें कि पूर्व जज स्व० उमाशंकर पाण्डेय ने अपने न्यायिक सेवा के दौरान देवभूमि उत्तराखण्ड के अलग-अलग जनपदों में अपनी यादगार सेवाएँ दी थी। अपने मिलनसार व्यवहार तथा न्याय के प्रति प्रतिबद्धता के चलते देवभूमि में उनकी एक अलग पहचान रही।
इतना ही नहीं हिमालय के प्रति स्व० उमाशकर पाण्डेय की श्रृद्धा अविस्मरणीय है। उनके द्वारा हिमालय के सम्मान में और पर्वतीय जन – जीवन एवं सरल लोक व्यवहार के साथ ही यहाँ की हिमालय जैसी समस्याओं पर अनेक कविताएं लिखी थी, जो आज और भी प्रासंगिक हैं । इसके अलावा भारतीय संस्कृति के प्रति भी उनका प्रेम देखते ही बनता था। अस्सी के दशक में सेवा से अवकाश प्राप्त करने के बाद स्व० उमाशकर पाण्डेय ने अपना बांकी जीवन अयोध्या में राम मन्दिर आन्दोलन को समर्पित कर दिया । राम मन्दिर आन्दोलन के तत्कालीन बड़े नेता स्व० अशोक सिंघल के नेतृत्व में स्व० पाण्डेय ने अपना भरपूर योगदान आन्दोलन में दिया ।
आज भी पहाड़ के पुराने लोग स्व उमाशंकर पाण्डेय के कार्यकाल का स्मरण कर भावुक हो जाते हैं।/ मदन मधुकर
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