स्वामी प्रभुपाद जी के पदचिन्हों पर चलकर श्री कृष्ण भक्ति की ध्वज पताका फहरा रहे है पूज्य गुरुदेव नव योगेन्द्र महाराज जी

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यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ।।

(श्रीमदभगवत गीता 3/21)

महापुरुष जैसा आचरण करते हैं सामान्य व्यक्ति उसी का अनुसरण करते हैं। वह जो आदर्श प्रस्तुत करते हैं, सम्पूर्ण विश्व उसी का अनुसरण करता है।

श्रील् नवयोगेन्द्र स्वामी (श्रील् नित्यानन्द पाद महाराज) ने अपने पूज्य गुरुदेव श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी के पदचिन्हों पर चलकर न केवल गुरु जी के लक्ष्य को आगे बढ़ाया है अपितु पूरी दुनिया को अनवरत् शुद्ध कृष्ण भक्ति के भावनामृत से अभिसिंचित कर रहे है। आज सम्पूर्ण विश्व में करोड़ों कृष्ण भक्त इस श्रेष्ठ मार्ग पर चलकर अपना तथा अपने सम्पर्क में आने वाले लोगों को दिव्य दिशा प्रदान कर रहे हैं।

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भारतवर्ष सहित सम्पूर्ण विश्व में शुद्ध कृष्ण मक्ति की अलख जगाने वाले पूज्य गुरुदेव श्रील् नवयोगेन्द्र स्वामी जी महाराज – श्रील् नित्यानंद पाद महाराज के सानिध्य में आज सैकड़ों दीक्षित संत विश्व कल्याण हेतु सतत समर्पित हैं। लोक मंगल की इस पावन भावना का श्रीगणेश अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ के संस्थापक आचार्य श्रीमद् ए.सी. मक्त्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद के सुखद प्रयासों से संभव हो पाया है। पूज्य गुरुदेव श्रील प्रभुपाद जी महाराज के उन लाखों अनुयायियों तथा हजारों संन्यासियों में से एक है, जिन्हें प्रभुपाद जी महाराज के दिव्य सानिध्य एवं शुद्ध मार्गदर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उसी का पुण्य फल है कि आज पूज्य गुरूदेव सम्पूर्ण भारतभूमि में तथा विश्वभर में कृष्ण भावनामृत का प्रसाद वितरित कर लोक कल्याण के प्रतीक बन गये है।

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अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ जो ‘इस्कॉन’ के नाम से जग प्रसिद्ध है, कृष्ण मक्ति का एक दिव्य अभियान है। इसके संस्थापकाचार्य श्रीमद् ए.सी. भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद जी महाराज ने विश्व मंगल की भावना से शुभारम्भ किया था और शनैः शनैः यह छोटा सा लगने वाला प्रयास वर्तमान में महान अभियान के रूप में परिणित होकर सम्पूर्ण विश्व में जन-जन को आलोकित कर रहा है।

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श्रील् प्रमुपाद जी महाराज के सर्वप्रिय शिष्यों में एक पूज्ड गुरूदेव श्रील् नवयोगेन्द्र नित्यानंद चाद महाराज क जन्म 12 मई वर्ष 1946 को रुक्मणी द्वादशी के दिन जम्मू कश्मीर स्थित ऊधमपुर की पवित्र नगरी में हुआ। इनके पिता पं. हरीश चन्द जम्मू कश्मीर प्रान्त के राजपुरोहित थे और माता श्रीमती मक्तिमती दुर्गादेवी अत्यधिक धर्मपारायण नारी के रूप में प्रतिष्ठित थीं। घर के परिवेश में शुद्ध कृष्ण भक्ति पूरी तरह समाहित थी जिसका प्रभाव बचपन से ही उनके जीवन में दिखायी देने लगा था।

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