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+ भावर क्षेत्र के सांपकठानी खत्ते में बारहों महीने दो-ढाई हजार गाय-भैंस पालकर करते थे दूध और मावे का व्यवसाय
+ स्थानीय समस्याओं एवं
विवादों में मजबूती से खड़े रहते थे पीड़ित पक्ष के साथ
+ अस्सी के दशक में रहे ग्रामसभा जयपुर बीसा के सबसे लोकप्रिय ग्राम प्रधान
+ पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल के सहपाठी थे तारादत्त दुर्गापाल, पूरे जीवनकाल में रहे उनके करीबी मित्रों में शामिल
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बता दें कि ” शैल शक्ति ” समाचार पोर्टल समय-समय पर ऐसे लोगों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को समाज के समक्ष प्रकाश में लाने का प्रयास करता आया है, जिनका जीवन वास्तव में जन सामान्य के लिए महान आदर्श एवं प्रेरणादायक रहा हो।
इसी क्रम में हमने हल्दूचौड़ अन्तर्गत जयपुर बीसा ग्राम पंचायत के पूर्व में एक बड़े पशुपालक रहे स्व० तारादत्त दुर्गापाल के संघर्षपूर्ण, परोपकारी व त्यागी जीवन को लेकर उनके सुपुत्र महेश चन्द्र दुर्गापाल से उनके आवास पर पहुंचकर जानकारी चाही ।
बातचीत के दौरान महेश चन्द्र दुर्गापाल ने बताया कि उनके पिता 88 वर्ष की यादगार यात्रा पूर्ण कर 29 जनवरी 2024 को अपना भरा-पूरा परिवार छोड़कर परम धाम को प्रस्थान कर गये थे और आगामी 17 जनवरी 2025 को उनका वार्षिक श्राद्ध दिवस है। उन्होंने कहा कि उनके पिता स्व० तारादत्त दुर्गापाल के व्यक्तित्व व कृतित्व पर उनके समकालीन रहे क्षेत्र के बुजुर्ग ज्यादा बेहतर बता सकते हैं, फिर भी वह श्रद्धापूर्वक कह सकते हैं कि उनके पिता एक अलग स्तर के संघर्षशील व्यक्ति थे। उनका त्यागपूर्ण एवं परोपकारी जीवन सम्पूर्ण परिवार के लिए सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा।
महेश चन्द्र दुर्गापाल ने बताया कि उनके पिता को लोग न सिर्फ भाभर क्षेत्र के एक बड़े पशुपालक के रूप में जानते थे अपितु उनकी कड़ी मेहनत, लगातार संघर्षों के साथ-साथ परोपकारी कार्यों में हमेशा तत्पर रहने के कारण भी उनका आदर-सम्मान करते थे। समाज में न्याय के लिए वह अपनों और परायों का विचार किये वगैर पूरी मजबूती से न्याय के साथ खड़े रहते थे। उन्होंने कहा कि 15 वर्ष की आयु में उनके पिता प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद अल्मोड़ा के दुगालखोला से हल्दूचौड़ के जयपुर बीसा गॉव चले आये थे। तब उनके दादा जी , जो पहले से ही इस गॉव में बस चुके थे और सांपकठानी खत्ते में गाय-भैंस पालकर दुग्ध उत्पादन , मावा आदि का व्यवसाय करते थे। महेश चन्द्र दुर्गापाल ने बताया कि उसी दौरान दादा जी की इच्छानुरूप उनके पिता ने हल्द्वानी के महादेव गिरी संस्कृत विद्यालय से मध्यमा तक शिक्षा ग्रहण की तत्पश्चात दादा जी के साथ लालकुआं कोतवाली के पश्चिम दिशा के घने जंगल में स्थित सांपकठानी खत्ते में पशुपालन के परम्परागत काम में जुट गये ।
महेश चन्द्र दुर्गापाल ने आगे बताया कि उनके पिता स्व० तारादत्त दुर्गापाल छोटी आयु में ही पशुपालन जैसे हाड़तोड़ मेहनत वाले काम से जुड़ गये थे । घने जंगलों के बीच जहाँ एक तरफ हिंसक जंगली जानवरों का खतरा रहता था, वहीं सर्दी-गर्मी व बरसात के मौसम बड़े ही कष्टदायी होते थे । तमाम बिपरीत हालातों में उनके पिता ने तब खत्ते में मौजूद तकरीबन दो से ढाई हजार गाय, भैंस, बछड़े आदि के पालन व देखभाल से लेकर गाय-भैंस का दूध दोहने, गोबर हटाने, दूध व मावा बाजार तक पहुंचाने तथा पशुओं के लिए चारा- पत्ती, पानी आदि का सारा जिम्मा संभाला और इस तरह दादा जी के काम में सक्रिय रहकर परिवार के व्यवसाय को आगे बढ़ाया । तब उनके पिता तलमाव यानी खत्ता से मलमाव यानी भाभर क्षेत्र में पैदल चलकर और क्षेत्रभर में पैदल भ्रमण कर दूध आदि लालकुआं तथा आस- पास के गावों में उपलब्ध कराते थे।
महेश चन्द्र दुर्गापाल ने बताया कि उनकी माता जी श्रीमती खष्टी देवी ने भी जीवनभर जयपुर बीसा गाँव में खेती-बाड़ी के साथ-साथ उनके पिता के पशुपालन व्यवसाय में भी हमेशा समर्पण व निष्ठा के साथ सहयोग किया और मर्यादित आचरण के साथ एक बड़े परिवार को सदैव तालमेल के साथ आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
महेश चन्द्र दुर्गापाल ने कहा कि वर्तमान में वह स्वयम भी और उनके दो अन्य भाई भी अपने माता-पिता के पदचिन्हों पर चलकर समाज के बीच अपने जीवन को सार्थक बनाने की दिशा में प्रयासरत रहते हैं। तीनों भाइयों का परिवार आज माता-पिता के आशीर्वाद से सुखपूर्वक और सन्तोष के साथ परिवार की परोपकारी एवं सेवा भाव वाली परम्परा को ही आगे बढ़ा रहे हैं ।
उन्होंने बताया कि अस्सी के दशक में उनके पिता जयपुर बीसा गाँव के सभापति रहे और उस कालखण्ड में उन्होंने समाज के लिए वह सब कार्य किये जो आमतौर पर मुश्किल व असम्भव माने जाते थे। निःस्वार्थ सेवा के चलते ही वह समूचे क्षेत्रभर में अत्यधिक लोकप्रिय रहे। उन्होंने कहा कि उनके पिता स्व तारादत्त दुर्गापाल क्षेत्र के विकासपुरूप माने जाने वाले पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल के न सिर्फ सहपाठी रहे अपितु पूरे जीवनकाल में उनके बहुत करीबी भी रहे । हरीश चन्द्र दुर्गापाल जी के साथ उनकी घनिष्ठ मित्रता को लेकर आज भी लोग चर्चा करते देखे जा सकते हैं।
महेश चन्द्र दुर्गापाल ने बताया कि उनके पिता अपने पाँच भाइयों में दूसरे भाई थे। सबसे बड़े स्व० पूरन चन्द्र दुर्गापाल, फिर उनके पिता स्व० तारादत्त दुर्गापाल, फिर स्व० केशव दत्त दुर्गापाल थे। सभी के बच्चे अपने-अपने परिवारों में सन्तुष्ट हैं। सभी में भरपूर आपसी सहयोग व स्नेह देखा जा सकता है। उन्होंने बताया कि चौथे और पांचवें भाई क्रमशः भुवन चन्द्र दुर्गापाल व दीप चन्द दुर्गापाल इसी जयपुर बीसा गॉव में आज भी अपने भरे-पूरे परिवारों क सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
महेश चन्द्र दुर्गापाल ने कहा कि उनकी माता श्रीमती खष्टी देवी हमेशा ही एक धर्मपारायण नारी रही हैं और आज भी अपने सनातनी परम्पराओं को लेकर सजग रहती हैं। उन्होंने कहा कि उनका सम्पूर्ण परिवार अपनी पर्वतीय संस्कृति व परम्पराओं में जीने पर विश्वास करता आया है और अपनी संस्कृति व परम्पराओं को जीवन्त बनाये रखने में सदैव सजग व सवेदनशील रहा है। यही कारण है कि उनके ताऊ स्वo पूरन चन्द्र दुर्गापाल के परिवार से लेकर उनके तीनों चाचा लोगों के परिवारों में आपसी प्रेम व सौहार्द का वातावरण सदैव से ही रहा है।
यहाँ यह भी बताते चलें कि महेश चन्द्र दुर्गापाल अपने तीन भाइयों में माता-पिता के सबसे ज्येष्ठ पुत्र हैं और वर्तमान में सैंचुरी मिल में सेवारत हैं। दूसरे भाई खीमानन्द सरकारी ठेकेदार हैं जबकि तीसरे भाई रुद्रपुर स्थित पशुआहार निर्माणशाला में सेवारत हैं। महेश चन्द्र दुर्गापाल कहते है कि तीनों भाई पिता जी के पदचिन्हों पर चलकर प्रेमपूर्वक अपना जीवन यापन कर रहे हैं और सभी अपने-अपने परिवारो में सन्तुष्ट रहकर परस्पर सहयोग को सदैव तत्पर रहते हैं।
कुल मिलाकर महेश चन्द्र दुर्गापाल के पिता स्व० तारादत्त दुर्गापाल ने पशुपालन के क्षेत्र में जो पहचान बनाई और परोपकारी कार्यों से समाज में जो प्रतिष्ठा अर्जित की, आज उसी परम्परा को आगे बनाये रखने के लिए सम्पूर्ण दुर्गापाल परिवार भी सदैव तत्पर देखा जा सकता है। इनके पिता स्वर्गीय खीमानन्द दुर्गापाल एवं माता स्वर्गीय गंगा देवी मानवीय गुणों के आदर्श रहे है
मदन मधुकर
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