हल्दूचौड़ का प्राचीन हनुमान मन्दिर: अटूट आस्था व भक्ति का एक चैतन्य धाम ,दर्शन मात्र से पूर्ण हो जाती हैं भक्तों की मनोकामनाएं भाभर के भूमिया देवता के रूप में भी पूजित हैं महावीर हनुमान

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हल्दूचौड़ क्षेत्र अन्तर्गत दुम्का बंगर उमापति गॉव स्थित प्राचीन हनुमान मन्दिर भक्तों की अटूट आस्था व भक्ति का एक चैतन्य एवं अलौकिक धाम के रूप में जाना जाता है । ऐसी मान्यता है कि अनन्त कोटि ब्रहमाण्ड की सभी दिव्य शक्तियों के स्वामी हनुमान जी यहाँ साक्षात विराजित हैं।क्षेत्र भर में ऐसे अनेकानेक साधक व श्रद्धालु हैं जो यहाँ नित्य विराजित व परम विभूषित संकट मोचन हनुमान जी की चमत्कारिक शक्तियों एवं अलौकिक महिमा के साक्षी रहे हैं। आज भी यहाँ आने वाले भक्तों को मन्दिर परिसर में पहुंचते ही अनेक दिव्य अनुभव सहज ही प्राप्त हो जाते हैं ।

दुम्का बंगर उमापति गॉव स्थित इस चमत्कारिक हनुमान मन्दिर से वर्षों से जुड़े भक्तो का विश्वास है कि जो भी श्रद्धालु निर्मल मन से और समर्पण भाव से यहाँ आकर हनुमान जी के दर्शन करते हैं उन्हे हर संकट से मुक्ति मिलती है मनोकामना पूर्ण होती हैं
क्षेत्र में कई ऐसे लोग भी देखे जा सकते हैं जो इस प्राचीन हनुमान मन्दिर में परम् विभूषित महावीर हनुमान जी को भाभर क्षेत्र के भूमियां देवता के रूप में भी पूजते हैं।

जानकार बताते हैं कि हनुमान जी का यह दिव्य गोपनीय स्थल हजारों सालों से अस्तित्व में रहा है, परन्तु भाभर क्षेत्र में खासतौर से हल्दूचौड़ क्षेत्र में डेढ़ – दो सौ वर्ष पूर्व लोगो की बसासत बढ़ने के बाद यह स्थल रहस्यमय ढंग से प्रकाश में आया । हालांकि घने जंगलों के बीच स्थित होने के कारण श्रद्धालु यहाँ नहीं पहुंच पाते थे, लेकिन साधकों के लिए यह निर्जन व सूनसान स्थल कभी अपरिचित नहीं रहा। इस दिव्य स्थल के अचानक प्रकाश में आने के पीछे बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं, जो पुराने बुजुर्गों द्वारा अपनी अगली पीढ़ी को बताई जाती रही है। एक किंवदन्ति यह भी है कि वियावान जंगल और घनी झाड़ियो के बीच यहाँ कोई भूत निवास करता था, उसी को साधने के लिए आज से लगभग सवा सौ साल पूर्व सिद्ध सन्त श्री श्री 1008 बाबा केशवदास अपने भक्त स्व हरिदत्त दुम्का के साथ जंगल भ्रमण करते हुए सहसा इस स्थल के पास रुक गये और घनी झाड़ियों के बीच विशाल धौड़ी के पेड़ के ऊपर स्थित पीपल वृक्ष को निहारने लगे । स्व हरिदत्त दुम्का ने जब इसका कारण जानना चाहा तो बाबा केशवदास ने झाड़ियो के बीच उस विशाल वृक्ष के समीप चलने का इशारा किया । वहाँ पहुंचने पर दोनों ने मिलकर वहाँ एक गड्ढा खोदा प्राचीन आध्यात्मिक विरासत के रूप में शिव पिण्डी प्राप्त हुई और फिर वहाँ अखण्ड रामायण पाठ का आयोजन कराया हनुमान जी को स्थापित किया

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इसी के साथ वहाँ कुटिया बनाकर नियमित रहने लगे और हनुमान जी ध्यान, पूजन आदि करने लगे। फिर क्या था धीरे धीरे भक्तों व श्रद्धालुओ का भी यहाँ पर आना जाना शुरू हो गया।
श्री श्री 1008 बाबा केशवदास ने धीरे-धीरे स्थानीय भक्तों विशेष रूप से स्व हरिदत्त दुम्का, बद्री दत्त दुम्का, धर्मा नन्द कपिल, विशम्बर कबडवाल, कान्ति बल्लभ दरवाल, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मथुरा दत्त कबडवाल, भवानी दत्त कबडवाल, बाल कृष्ण दुम्का हरि दत्त काण्डपाल आदि समेत दर्जनों अन्य लोगों के सहयोग  से इस पुण्य भूमि पर एक हनुमान मन्दिर का निर्माण कराया और हनुमान जी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर नित्य पूजा- अर्चना, रामायण पाठ, भण्डारे आदि कार्यक्रम आरम्भ करवाये / तभी से यह मन्दिर हल्दूचौड़ क्षेत्र में गहरी आस्था का पावन केन्द्र बन गया।
मन्दिर का व्यवस्थित रूप से संचालन करने व आगे की जरूरतों के मद्देनजर वर्ष 2010 में यहाँ एक मन्दिर समिति का गठन किया गया। ” श्री हनुमान मन्दिर एवं श्री श्री 1008 बाबा केशवदास आश्रम समिति ” के नाम से गठित यही समिति अब मन्दिर की सारी व्यवस्थाएं संभाल रही है। वर्तमान में उमेश चन्द्र कबडवाल इसके संरक्षक हैं जबकि कैलाश चन्द्र दुम्का अध्यक्ष, दया किशन उपाध्यक्ष, बालकृष्ण दुम्का सचिव, दयाकिशन बमेटा लेखा निरीक्षक तथा खीमानन्द तिवारी कोषाध्यक्ष का दायित्व निभा रहे हैं। इसके अलावा नवीन चन्द्र बमेटा, मुकेश . दुम्का, भुवन गरवाल, पूरन कबडवाल, कैलाश बमेटा तथा खीम सिंह बिष्ट बतौर कार्यकारिणी सदस्य अपना योगदान कर रहे हैं।

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समिति के तत्वावधान में समय समय पर यहाँ अखण्ड रामायण पाठ, सुन्दर काण्ड पाठ, शिव महापुराण व भागवत कथा आदि का भव्य व दिव्य आयोजन होते रहते हैं।

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मन्दिर परिसर में अब शनिदेव मन्दिर, काल भैरव मन्दिर, अर्द्ध नारीश्वर मन्दिर, दत्तात्रेय मन्दिर समेत एक धर्मशाला का निर्म्पण भी हो चुका है। हल्दूचौड़ क्षेत्र के अलावा आस पास के नगरों , कस्बों तथा ग्रामीण अंचलों से अब यहाँ श्रद्धालुओ की आवाजाही बढ़ने लगी है।

हनुमान मंदिर हल्दूचौड़ के प्रमुख आस्थावान रहे भक्त व वर्तमान के निष्ठावान भक्त

*01- स्वर्गीय हरिदत्त दुम्का (रामराज्य)*
*02-स्वर्गीय मथुरा दत्त कबडवाल (स्वतंत्रता सेनानी)*
*03-स्वर्गीय रामकिशन दुम्का (स्वतंत्रता सेनानी)*
*O4- स्वर्गीय भवानी दत्त कबडवाल*
*05-स्वर्गीय राधापति जोशी*
*06-स्वर्गीय बालादत्त बमेटा*
*07-स्वर्गीय खिमान्नद कबडवाल*
*08-स्वर्गीय कांतिवल्लभ गरवाल*
*09-स्वर्गीय भवानीदत्त दुम्का*
*10-स्वर्गीय धर्मानंद कपिल*
*11-स्वर्गीय श्रीकृष्ण बमेटा*
*12-स्वर्गीय पूरन जोशी*
*13-स्वर्गीय बद्रीदत्त गरवाल*
*14-स्वर्गीय हवलदार*
*15-स्वर्गीय किशन राणा*
*16-स्वर्गीय केशव दत्त सनवाल*
*17 स्वर्गीय नंदकिशोर कपिल*
*18-श्री हरिदत्त कांडपाल*
*19-श्री गोपाल दत्त दुम्का*
*20-श्री बलादत्त दुम्का*
*21-श्री बालकिशन दुम्का*
*22-श्री त्रिलोचन कपिल*

*श्री श्री 1008 बाबा केशव दास के ब्रह्मलीन होने के बाद उनके भाई श्री हरि दास जी उनके ब्रह्मलीन होने के बाद श्री श्रीकृष्ण बमेटा जी ने पूजा पाठ का कार्य संभाला वर्तमान समय में प्रकाश जोशी जी यहाँ पूजा- अर्चना का दायित्व संभाले हुए है इससे पूर्व स्व० श्री चन्द्र शेखर जोशी जी यह दायित्व संभाले थे

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