अवंतिका मंदिर कमेटी के अध्यक्ष पहुंचे माँ भद्रकाली दरबार, बताई महिमां अपरम्पार

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कुमाऊँ के प्रवेश द्वार लालकुआँ में स्थित प्रसिद्ध शक्ति स्थल माँ अवंतिका मंदिर कमेटी के अध्यक्ष पूरन सिंह रजवार अपनी धर्म यात्रा के तहत भद्रकाली मंदिर पहुंचे यहाँ पहुंचकर उन्होंने अपने आराधना के श्रद्धापुष्प माँ भद्रकाली के चरणों में अर्पित किये श्री रजवार ने कहा माँ अवंतिका के अशीर्वाद से उन्हें इन दिनों देवी के विभिन्न तीर्थ स्थलों के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है माँ कोकिला के दर्शनों के पश्चात् माँ भद्रकाली का बुलावा उनके लिए परम सौभाग्य का विषय है श्री रजवार ने बताया कोटगाड़ी माता के दरबार में माँ के अनन्य भक्त गोविन्द बल्लभ पाठक जी का यादगार व आत्मिक स्नेह रहा उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की धरती पर एक से बढ़कर एक पावन तीर्थ स्थलों की भरमार है लेकिन भद्रकाली माता का जो अलौकिक व भव्य स्वरूप है वह अपने आप में अद्भुत व निराला है यहां के सौंदर्य व यहां की अद्भूत महिमां को शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है इस अवसर पर उनके साथ उनकी धर्म पत्नी श्रीमती दुर्गा देवी रजवार पुत्र विनय रजवार के अलावा वरुण पाठक माया चमोली पप्पू चमोली आदि सम्बधी मौजूद रहे

यहाँ यह बताते चले कि जनपद बागेश्वर का भद्रकाली क्षेत्र आध्यात्म जगत में प्राचीन काल से ही काफी प्रसिद्ध रहा है।नागराजाओं व विभिन्न नागों सहित कभी शाण्डिल ऋषि,कुशंडी ऋषि, पंतजली ऋषि, सहित असंख्य ऋषि मुनियों की तपस्या का केन्द्र रहा यह पावन क्षेत्रं तीर्थाटन की दृष्टि से बेहद उपयोगी है

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बासपटान कांडा मोटर मार्ग में कमस्यार घाटी के अर्न्तगत सनीअडियार व हवनतोली क्षेत्रं प्राचीन समय में आध्यात्मिक विरासत की प्रमुख धरोहरे थी।मान्यता है,कि हवनतोली नामक स्थान पर महाप्रतापी नागों ने ऋषियों के साथ मिलकर मां भद्रकाली को समर्पित विराट हवन का आयोजन किया था।तभी से यह स्थान हवनतोली के नाम से जगत में प्रसिद्व हुआ

हवनतोली व सनीउडियार का जिक्र पुराणों में भी आता है।नागपुर नागभूमि के नाम से यह घाटी प्रसिद्व है। और यहां की इष्ट देवी माँ भद्रकाली है महर्षि व्यास जी ने भी इस रमणीक घाटी का जिक्र स्कंद पुराण में किया है।इसे शिव व शक्ति की वासभूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। इसी पावन भूमि पर आस्तीक आदि ऋषियों ने नागों के साथ मिलकर माँ भद्रकाली का वैभवशाली यज्ञ किया।इस महायज्ञ के बारे में पुराणों में विस्तार के साथ कथा आती है।जिसका संक्षिप्त सार इस प्रकार है।

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नाग पर्वत व इस भूमि में निवास करने वाले नागों के मन में भगवान शिव की प्रेरणा से यह इच्छा जागृत हुई।कि इस क्षेत्रं में माँ भद्रकाली के विशेष यज्ञ का आयोजन करके ब्रह्मा जी के दर्शन किये जाएं।यज्ञ के आयोजन को लेकर नागप्रमुख मूल नारायण जी की अध्यक्षता में बैठक हुई।जिसमें फेनिल नाग सहित अनेक नागों ने भाग लिया फेनिल नाग के अनुरोध पर ब्रह्मणों व महर्षियों ने भद्रा का आवाहन कर यज्ञ आरम्भ किया।ऋषियों के आवाहन से जो भद्रा प्रकट हुई वह इस क्षेत्रं की पवित्र नदी है।इस नदी में स्नान का बड़ा ही महत्व है।पुराणों में कहा गया है।जो व्यक्ति श्रद्वा के साथ भद्रा नदी में स्नान करता है।वह ब्रह्म लोक का भागी बनता हैं।इस प्रकार नागों ने भद्रा की कृपा से यज्ञ सम्पन करके ब्रह्मा जी के दर्शन किए।

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जिस गोपीवन भूभाग में नागों ने यज्ञ किया उस गोपीवन का भी पुराणों में अद्भूत जिक्र आता है। माँ भद्रकाली के मंदिर के दर्शन के पश्चात इस स्थान के दर्शन से माँ भद्रकाली की परम कृपा प्राप्त होती है गोपीवन में महादेव जी का प्राचीन मंदिर है।जो श्रद्वा व भक्ति का संगम है।पुराणों में बताया गया है,कि भद्रकाली व गोपेश्वर का पूजन करने से सारी पृथ्वी की इक्कीस बार परिक्रमां का फल प्राप्त होता है।पुराणों में स्पष्ट है।
*त्रिः सप्तकृत्वा सकलां धरित्रीं प्रकम्य यद्याति महीतलै वै।।*

कुल मिलाकर नागपर्वत व पर्वतों पर विराजमान नागमंदिर व शिव शक्ति पीठों की माहिमां अपरम्पार है। जो भद्रकाली की विराट महिमां दर्शाती है।इस भूभाग में बहनें वाली नदियां भद्रा,सरस्वती गंगा,गुप्तसरस्वती,सुभद्रा,चन्द्रिका,सोमवती,मधुमती,शकटी,हीमगिरी,पृथा,भुजंगा,नारायणी,गौरी,जटागंगा,सुमेना, आदि नाम से पुकारी जाती है।

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